Thursday, 13 August 2015

संधारा/संलेखना/समाधि की परम्परा व धार्मिक महत्व न केवल जैन समाज अपितु भारत वर्ष के विभिन्न धर्मों की मान्यताऐं है,

श्रीमती अर्चना जायसवाल ने महामहिम राष्ट्रपति महोदय को पत्र लिखकर कहा किसी भी धर्म व समाज की प्रथाओं, विश्वासों व मान्यताओं को एक दम बदलना या गलत ठहराने के प्रयास करना उनुचित है। हम कोर्ट का सम्मान करते है परंतु अनादिकाल से चली आ रही संस्कृति - संस्कार - आचार पर कोई व्यवधान थोड़ा अचंभित करता है उपरोक्त कथन श्रीमती अर्चना जायसवाल ने कहे। हमारा निवेदन कोर्ट से है कि किसी भी धर्म की प्रमुख प्रथाओं मे परिवर्तन करने से पहले उस धर्म के गुरूओं, गुणीजनों, वरिष्ठ समाजजनों को सुनना, उनके तर्क लेना, बात सुनना, पहलू जानना चाहिये, ताकि सही बात सामने आ सके। बिना सही पहलू जाने कोई आदेश जारी कर देना समाज, धर्म, जाति, संप्रदाय विशेष पर आधात होगा।

श्रीमती जायसवाल ने कहा संधारा/संलेखना/समाधि की परम्परा व धार्मिक महत्व न केवल जैन समाज अपितु भारत वर्ष के विभिन्न धर्मों की मान्यताऐं है,

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